ईर्ष्या



                                                                               
*💥ईर्ष्या💥*

एक गुरु के कुछ शिष्य थे। लेकिन गुरु उनमे से एक शिष्य आनंद से बहुत स्नेह करते थे। अन्य शिष्यों को यह देखकर ईर्ष्या होने लगी। वे सोचते कि हम भी शिष्य हैं। हम भी गुरु की सेवा करते हैं फिर भी गुरुदेव हमसे ज्यादा स्नेह करने की बजाय आनंद से ही क्यों करते हैं। यह बात गुरुदेव को पता चली। 

उन्होनें शिष्यों को समझाने के लिए एक युक्ति खोजी। गुरुदेव ने अपने पैर में एक कच्चा आम बांधकर ऊपर से कपड़े की पट्टी लगा ली। जब शिष्यों ने देखा कि गुरुदेव के पैर पर कपड़ा बंधा है, तो उन्होंने इसका कारण पूछा। गुरुदेव ने कहा कि पैर में फोड़ा निकल आया है। बहुत पीड़ा कर रहा है।

कुछ दिनों में आम पक गया और उसका रस बहने लगा। गुरुदेव पीड़ा से कराहने लगे। उन्होनें सभी शिष्यों को बुलाकर कहा- अब फोड़ा पक गया है उसमें से मवाद निकल रहा है। मुझसे यह पीड़ा सहन नहीं हो रही है यदि तुमसे कोई इस फोड़े को अपने मुंह से चूस ले तो यह मिट सकता है सभी शिष्य एक- दूसरे का मुंह देखने लगे। सभी कोई न कोई बहाना बनाकर वहां से निकल गए। 

यह बात आनंद को पता लगी। वह तुरंत आया और फोड़े का मवाद चूसने लगा। गुरुदेव ने आनंद को आशीर्वाद दिया और कहा- मेरी पीड़ा चली गई। उसके बाद से किसी भी शिष्य ने आनंद से ईर्ष्या नहीं की।

यह मानवीय कमजोरी है कि मनुष्य कहीं ना कहीं, किसी ना किसी से ईर्ष्या करने लग जाता है। कईं बार उसे अपने पड़ोसियों से ईर्ष्या होती है, कईं बार अपने सहकर्मियों से ईर्ष्या करने लगता है। कभी-कभी ऐसे स्थानों पर भी मनुष्य ईर्ष्यालु हो जाता है जहां ईर्ष्या को पनपने की आवश्यकता ही नहीं होती हैं। ऐसे में बेवजह जो ईर्ष्या होती है वह कईं बार मनुष्य को अपनी ही नजरों के सामने गिरा देती है। उपरोक्त कहानी भी इसी बात को इंगित करती है।

  • सार- यह मानवीय कमजोरी है कि मनुष्य कहीं ना कहीं,किसी ना किसी से ईर्ष्या करने लग जाता है। ऐसे में कईं बार वह अपनी ही नजरों में गिर जाता है। अत: ईर्ष्या, द्वेष को कदापि खुद पर हावी न होने दें।
  •  कभी  भी परमात्मा के पास शिकायत लेकर न जाएँ। क्योंकि शिकायत से भरा ह्रदय कभी परमात्मा तक नहीं पहुंच पाता। शिकायत उससे दूर ले जाने की व्यवस्था है । परमात्मा से कभी कुछ न मांगें। क्योंकि  मांगने का अर्थ ही है कि अभी ह्रदय मेंधन्यता का भाव जाग्रत नहीं हुआ।कितना भी मिल जाये,आप मांगते ही चले जाते हैं ।आपका मन संसार से भरता ही नहींऔर परमात्मा से दूरीबनी रहती है।हरी ओम्

Comments

Popular Posts